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Rabi al-Awwal may be the 3rd month inside the Islamic Lunar Calendar slipping just after the month of Safar. The celebrations of the working day can vary from position to position throughout the world. The thirty day period is auspicious and might be utilized To find out more with regards to the teachings of Prophet Muhammad (PBUH), offer prayers and supplications, study the Islamic tales and even more.
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All guests arriving from the region with a legitimate visa will have to offer proof of a full system of 1 the 4 vaccines (vaccine certificates for COVID 19).
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Mawlid, Mawlid un-Nabi, or Milad un-Nabi is a vital day from the background of Islam that marks the birthdate of beloved Prophet Muhammad (PBUH). It truly is celebrated as an Islamic holiday getaway in several international locations across the globe. Though the precise day in the day is unidentified and remains a make any difference of discussion, the working day is noticed within the twelfth of Rabi al-Awwal.
ग़ौस-उल-आ'ज़म दस्त-गीर ! हर फ़िक्र से तुम हो कर आज़ाद चले जाओ ले कर के लबों पर तुम फ़रियाद चले जाओ मिलना है अगर तुम को वलियों के शहंशा से ख़्वाजा से इजाज़त लो, बग़दाद चले जाओ अल-मदद, पीरान-ए-पीर ! ग़ौस-उल-आ'ज़म दस्त-गीर ! अल-मदद, पीरान-ए-पीर ! ग़ौस-उल-आ'ज़म दस्त-गीर ! ग़ौर कीजे कि निगाह-ए-ग़ौस का क्या हाल है है क़ुतुब कोई, वली कोई, कोई अब्दाल है दूर है जो ग़ौस से, बद-बख़्त है, बद-हाल है जो दीवाना ग़ौस का है सब में बे-मिसाल है दीन में ख़ुश-हाल है, दुनिया में माला-माल है अल-मदद, पीरान-ए-पीर ! ग़ौस-उल-आ'ज़म द
हस्बी रब्बी जल्लल्लाह, मा फ़ी क़ल्बी गै़रुल्लाह
हम ने आँखों से देखा नहीं है मगर उन की तस्वीर सीने में मौजूद है जिस ने ला कर कलाम-ए-इलाही दिया वो मुहम्मद मदीने में मौजूद है हम ने आँखों से देखा नहीं है मगर उन का जल्वा तो सीने में मौजूद है जिस ने ला कर कलाम-ए-इलाही दिया वो मुहम्मद मदीने में मौजूद है फूल खिलते हैं पढ़ पढ़ के सल्ले-'अला झूम कर कह रही है ये बाद-ए-सबा ऐसी ख़ुश्बू चमन के गुलों में कहाँ ! जो नबी के पसीने में मौजूद है हम ने माना कि जन्नत बहुत है हसीं छोड़ कर हम मदीना न जाएँ कहीं यूँ तो जन्नत में सब है मदीना नहीं और जन्नत मदीने में मौजूद है छोड़ना तेरा तयबा गवारा नहीं सारी दुनिया में ऐसा नज़ारा नहीं ऐसा मंज़र ज़माने में देखा नहीं जैसा मंज़र मदीने में मौजूद है ना'त-ख़्वाँ: महमूद जे.
नअ़रा -ए-तकबीर कह कर रन में जो उतरे फ़राज़।
बलागाल उला बी कमालिही कसाफत दूजा बी जमालिही
फिर भी तुझ से है ये दु'आ, वक़्त-ए-नज़ा' जब आए मेरा
मैं पानी का प्यासा नहीं हूँ मेरा सर कटाने को दिल चाहता है वो शहर-ए-मोहब्बत जहाँ मुस्तफ़ा हैं वहीं घर बनाने को दिल चाहता है जो देखा है
बचाना नार-ए-दोज़ख़ से ख़ुदा-रा, या रसूलल्लाह !
वो शहर-ए-मोहब्बत जहाँ मुस्तफ़ा हैं वहीं घर बनाने को दिल चाहता है वो सोने से कंकर, वो चाँदी सी मिट्टी नज़र में बसाने को दिल चाहता है वो शहर-ए-मोहब्बत जहाँ मुस्तफ़ा हैं वहीं घर बनाने को दिल चाहता है जो पूछा नबी ने कि कुछ घर भी छोड़ा तो सिद्दीक़-ए-अकबर के होंटों पे आया वहाँ माल-ओ-दौलत की क्या है हक़ीक़त जहाँ जाँ लुटाने को दिल चाहता है वो शहर-ए-मोहब्बत जहाँ मुस्तफ़ा हैं वहीं घर बनाने को दिल चाहता है जिहाद-ए-मोहब्बत की आवाज़ गूँजी कहा हन्ज़ला ने ये दुल्हन से अपनी इजाज़त अगर हो तो जाम-ए-शहादत लबों से लगाने को दिल चाहता है वो शहर-ए-मोहब्बत जहाँ मुस्तफ़ा हैं वहीं घर बनाने को दिल चाहता है सितारों से ये चाँद कहता है हर-दम तुम्हें क्या बताऊँ वो टुकड़ों का 'आलम इशारे में आक़ा के इतना मज़ा था कि फिर टूट जाने को दिल चाहता है वो शहर-ए-मोहब्बत जहाँ मुस्तफ़ा हैं वहीं घर बनाने को दिल चाहता है वो नन्हा सा असग़र, वो एड़ी रगड़ कर यही कह रहा था वो ख़ैमे में रो कर ऐ बाबा !
हाफ़िज़ कामरान क़ादरी अलीशा कियानी ham ne aankho.n se dekha nahin hai magar un ki tasweer seene me.n maujood hai jis ne laa kar kalaam-e-ilaahi diya wo muhammad madine me.n maujood hai ham ne aankho.n se dekha nahin hai magar un ka jalwa to seene me.n maujood hai jis ne laa kar kalaam-e-ilaahi diya wo muhammad m
آقا کے غلاموں کو آقا کے غلاموں کو اب عید منانے دو سرکار کی آمد ہے راہوں کو سجانے…
वो शहर-ए-मोहब्बत जहाँ मुस्तफ़ा हैं वहीं घर बनाने को दिल चाहता है वो सोने से कंकर, वो चाँदी सी मिट्टी नज़र में बसाने को दिल चाहता है वो शहर-ए-मोहब्बत जहाँ मुस्तफ़ा हैं वहीं घर बनाने को दिल चाहता है जो पूछा नबी ने कि कुछ घर भी छोड़ा तो सिद्दीक़-ए-अकबर के होंटों पे आया वहाँ माल-ओ-दौलत की क्या है हक़ीक़त जहाँ जाँ लुटाने को दिल चाहता है वो शहर-ए-मोहब्बत जहाँ मुस्तफ़ा हैं वहीं घर बनाने को दिल चाहता है जिहाद-ए-मोहब्बत की आवाज़ गूँजी कहा हन्ज़ला ने ये दुल्हन से अपनी इजाज़त अगर हो तो जाम-ए-शहादत लबों से लगाने को दिल चाहता है वो शहर-ए-मोहब्बत जहाँ मुस्तफ़ा हैं वहीं घर बनाने को दिल चाहता है सितारों से ये चाँद कहता है हर-दम तुम्हें क्या बताऊँ वो टुकड़ों का 'आलम इशारे में आक़ा के इतना मज़ा था कि फिर टूट जाने को दिल चाहता है वो शहर-ए-मोहब्बत जहाँ मुस्तफ़ा हैं वहीं घर बनाने को दिल चाहता है वो नन्हा सा असग़र, वो एड़ी रगड़ कर यही कह रहा था वो ख़ैमे में रो कर ऐ बाबा !
सब ने ही दिन ये मनाया, आका का मिलाद आया।
अपनी बहन से बोले 'उमर, ये तो बता क्या करती थी ?